Monday, 27 July 2015

श्र्द्धांजलि एपीजे अब्दुल कलाम

देश के पूर्व राष्ट्रपति और मशहूर वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम का निधन हो गया है. दिल का दौरा पड़ने से सोमवार को शिलॉन्ग में उनका निधन हो गया.
83 वर्ष के अब्दुल कलाम अपनी शानदार वाक कला के लिए मशहूर थे, लेकिन खबरों के मुताबिक, एक लेक्चर के दौरान ही काल ने उन्हें अपना ग्रास बना लिया. जैसे ही समाचार चैनलो के माध्यम से हमे यह सुचना मिली मेरे आसुं कुछ मिनटो तक रूक नही रहे थे मै चाहता हु युवा उन्हे श्र्द्धांजलि दें और अपने राजनीती जीवन में उनके कार्य से प्रेणा ले !
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Wednesday, 18 March 2015

भूमि अधिग्रहण बिल व उसके संशोधन क्या है?

भूमि अधिग्रहण विधेयक ज़मीन के अधिग्रहण और पुनर्वास के मामलों को एक ही क़ानून के तहत लाए जाने की योजना है। वर्ष 2013 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने संसद में भूमि अधिग्रहण बिल पास किया था। जिसमें किसानों के हित के लिए कई निर्णय लिए गये थे। फिलहाल भारत में जमीन अधिग्रहण 1894 में बने कानून के तहत होता है।
29 अगस्त, 2013 को लोकसभा से पारित होने के बाद इस विधेयक को 4 सितंबर, 2013 को राज्यसभा से भी मंजूरी मिल गई। राज्यसभा में बिल के पक्ष में 131 और विरोध में 10 वोट पड़े वहीं लोकसभा में 216 पक्ष में और 19 मत विरोध में पड़े थे।
राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह विधेयक 119 साल से चल रहे ब्रिटिश हुकुमत वाले भूमि अधिग्रहण बिल की जगह ले लेगा। एक सदी से चल रहे भूमि अधिग्रहण बिल की कई खामियां को इसमें सुधारा गया है।

भूमि अधिग्रहण विधेयक क्या है?

भारत में 2013 क़ानून के पास होने तक भूमि अधिग्रहण का काम मुख्यत: 1894 में बने क़ानून के दायरे में होता था. लेकिन मनमोहन सरकार ने मोटे तौर पर उसके तीन प्रावधानों में बदलाव कर दिए थे. ये भूमि अधिग्रहण की सूरत में समाज पर इसके असर, लोगों की सहमति और मुआवज़े से संबंधित थे. पिछले साल दिसंबर में मोदी सरकार ने एक अध्यादेश लाया. यूपीए के भूमि अधिग्रहण कानून में कुछ बदलाव करते हुए. लेकिन विपक्ष को ये बदलाव खटक रहे हैं. आइए, जानते हैं इस बिल से जुड़ी बारीकियों के बारे में-
1. समाज पर असर वाले प्रावधान को ख़त्म किया गया है
सोशल इंपैक्ट असेसमेंट की मदद से ये बात सामने आ सकती थी कि भूमि लिए जाने से वहां के समाज पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा. क्योंकि भूमि अधिग्रहण का असर सिर्फ बड़े किसानों या जमीन मालिकों पर ही नहीं होता, छोटे किसान और मजदूर भी वहां होते हैं, जो वर्षों से उस जमीन पर काम कर रहे होते हैं. यदि जमीन ले गई तो वे क्या करेंगे, कहां रहेंगे.
2. लोगों की रज़ामंदी हासिल करने से छुटकारा
2013 के क़ानून में एक प्रावधान रखा गया था लोगों से सहमति लेने का. सरकार और निजी कंपनियों के साझा प्रोजेक्ट में प्रभावित जमीन मालिकों में से 80 फीसदी की सहमति जरूरी थी. सरकारी परियोजनाओं के लिए ये 70 प्रतिशत था. नए क़ानून में इसे ख़त्म कर दिया गया है. रक्षा, ग्रामीण बिजली, ग़रीबों के लिए घर और औद्योगिक कॉरीडोर जैसी परियोजनाओं में 80 फीसदी लोगों के सहमिति की आवश्यकता नहीं होगी.
3. नहीं बढ़ा मुआवज़ा
संशोधन में भी मुआवज़े की दर को पहले जैसा ही रखा गया है. जमीन की कीमत के बाजार मूल्य का ग्रामीण इलाकों में चार गुना और शहरों में दोगुना. फर्क सिर्फ इस बात का है कि सामाज पर पड़ने वाले असर के प्रावधान को खत्म करके सरकार ने मुआवजे की सीमा सिर्फ उन्हीं लोगों तक सीमित कर दी है, जिनके नाम जमीन है. जबकि पुराने कानून में ऐसे सभी लोगों को मुआवजा देने का प्रावधान था, जो उस जमीन पर निर्भर हैं.
4. जमीन बंजर हो या उपजाऊ फर्क नहीं पड़ेगा
सरकार ने जिन पांच सेक्टरों को प्राथमिकता की सूची में डाला है, उनके लिए जमीन अधिग्रहण करते वक्त यह नहीं देखा जाएगा कि वह जमीन बंजर है या उपजाऊ. जैसा कि सिंगूर के मामले था. अब बिना कोई पूछताछ के उसे सरकार ले लेगी.
5. 13 और कानूनों को भूमि अधिग्रहण में शामिल कर लिया
इस कदम को किसानों के पक्ष में माना जा रहा है. देश में 13 कानून और हैं, जिनके तहत जमीन तो अधिग्रहित की जाती है. लेकिन मुआवजे और पुनर्वास की कोई ठोस व्यवस्था नहीं थी. अब भूमि अधिग्रहण कानून के तहत ऐसे सभी मामलों में मुआवजा दिया जाएगा और पुनर्वास कराया जाएगा. जिन मामलों में इसका फायदा मिलेगा, वे हैं नेशनल हाईवे एक्ट, एटॉमिक एनर्जी एक्ट, पेट्रोलियम एंड मिनरल पाइप लाइंस एक्ट, इलेक्‍ट्रिसिटी एक्ट आदि.